Thursday

सारे सपने कहीं खो गए..

मोहब्बत पलकों पे कितने हसीं खवाब सजाती है..
फूलों से महकत खवाब..
सितारों से जगमगात खवाब..
शबनम से बरसत खवाब..
फिर कभी यूँ भी होता है की
पलकों की डालियों से खवाबों
के सारे परिंदे उड़ जात
हैं..और आँखें वीरान सी रह जाती हैं"

सारे सपने कहीं खो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए..
दिल से तन्हाई का दर्द जीता
क्या कहें हम पे क्या क्या न बीता..
तुम न आए, मगर जो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए॥

सारे सपने कहीं खो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए..

तुमने हमसे कहीं थी जो बातें..
उनको दोहराती हैं गम की रातें..
तुमसे मिलने के दिन तो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए..

सारे सपने कहीं खो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए..

कोई शिकवा न कोई गिला है..
तुमसे कब हमको यह गम मिला है...
हाँ नसीब अपने ही सो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए..

सारे सपने कहीं खो गए..
हाय हम क्या से क्या हो गए..

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